याद आते है वो दिन,
वो नादानियां, वो बचपन.......
वो छप छप की आवाज़,
वो पानी की बौछारें,
वो बूंदों का गिरना,
वो बारिश की पहली मुस्कान.......
वो छत पे नाचना गाना,
हंगामा और शोर मचाना,
करना अजीब हरकतें,
वो दोस्तों का लड़कपन.......
याद आते है वो दिन,
वो नादानियां, वो बचपन........
सावन की पहली बारिश में,
वो खिडकियों से दूर,
सबको नाचते देखना,
वो मिटटी की खुशबू ,
वो गर्मागर्म पकवान.......
है अब भी वही बारिश,
है अब भी वही सावन......
याद आते है तो बस,
वो नादानियां, वो बचपन.........
--जसमीत
lovely lines ... beautifully written.
ReplyDelete:) thanks malay
Deleteबचपन होता ही है कुछ ऐसा, बार बार याद आता है ( लेकिन किसी बच्चे को बच्चा कहो तो वो नाराज़ हो जाता है !)
ReplyDeletebilkul sai khan apne rajneesh ji, bache hote hi nadan hai :)
DeleteSeen this blog by chance.
ReplyDeletebeautiful expression, beautiful use of words.
long way to go...
thanks Ashish :)
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