Pages

Tuesday, May 15, 2012

ये ज़िन्दगी भी क्या चीज़ है .

यूँ ही सोचते सोचते ,
नज़र पड़ी जब खुद पर ,
हैरान हु मैं देखकर ,
की ये ज़िन्दगी  भी  क्या  चीज़  है . 

खुदा  के  इस  जहाँ  में ,
इंसान  बन  कर  आया  था ,
दुनिया  ने  क्या  क्या  बनाया ,
ये  खुद  भी  न  समझ  पाया  हु ,
रहत  की  साँसे  कितनी  महंगी  है ,
ये  अब  पता  लगा  है ,
इस  ज़िन्दगी  की  होद्ध  में ,
ये  बंदगी  भी  क्या  चीज़  है .
हैरान  हु  मैं  देख  कर ,
की  ये  ज़िन्दगी  भी  क्या  चीज़  है .


रहमत  है  की  हु  अभी  भी ,
दुरुस्त  इस  ज़हन  से  ,
न  जाने  क्या  क्या  है  छुपा ,
इस  ज़हन  के  इस  कफ़न  में  ,
अभी  जिंदा  हु  तो  जानता  हु ,
की  जीना  भी  जरूरी  है ,
ये  जिंदा  रहने  की  हसरत ,
ज़िन्दगी  की  आशिकी  भी  क्या  चीज़  है .
हैरान  हु  मैं  देख  कर ,
की  ये  ज़िन्दगी  भी  क्या  चीज़  है .


उम्मीद  का  ये  दरिया  सा ,
कुच्छ  मैंने  खुद  ,
 कुछ  इस  जहाँ  ने  बना  दिया ,
गफलत  में  हु  मैंने  ,
ये  डूबने  का  सामान  क्यों  बना  दिया ,
हाँ  मुझे  चलना  तो ,
मेरे  दो  खुदा  ने  सिखा  दिया ,
पर  अब  चलता  ही  रहता  हु ,
ये  आवारगी  भी  क्या  चीज़  है .
हैरान  हु  मैं  देख  कर ,
की  ये  ज़िन्दगी  भी  क्या  चीज़  है .

सपना.........



मैंने कल एक सपना देखा,
दूर खड़ा कोई अपना देखा ...........

भीनी भीनी खुशबू लेकर आई जब  ठंडी हवा,
आशाओ की लहरों को मैंने सर सर कर  उमड़ते देखा ..........
हाँ मैंने एक ऐसा सपना देखा , दूर खड़ा कोई अपना देखा ...........

बरसातों की बूंदे जैसे टप टप करती गिरती हैं ,
उन बूदों से आशाओं का सागर मैंने भरता देखा ............
हाँ एक ऐसा सपना देखा , दूर खड़ा कोई अपना देखा .............

देखी उस सपने से उमंगें , पंछी बन फर्फराते कैसे  ,
पंख खोल कर भर चित करके फड फड उनको उड़ते देखा ..........
हाँ एक ऐसा सपना देखा , दूर खड़ा कोई अपना देखा ................

मन मेरा भी करता पंछी बन मैं आसमान में उडती फिरु,
आशाओं की उड़ान भर हाँ मैंने एक सपना  देखा ...........
दूर खड़ा कोई अपना देखा ..................


// जसमीत


Friday, May 4, 2012

रिश्ते .............


वक़्त की आंच पे, 
पिघल जाते है रिश्ते
ना रखो ख्याल,
तो बदल जाते है रिश्ते
कभी और लेते है खुशनुमा रंगों को,
कभी बदरंग से हो जाते है रिश्ते...........
करते है पार सभी हदों को,
कभी दायरे में सिमट जाते हैं रिश्ते
कभी समुंदर सी गहराई तो,
कभी मंद लहरों से हो जाते है रिश्ते 
होते है नाजुक कड़ी से,
              एक ठोकर से बिखर जाते है रिश्ते..........

जसमीत कुकरेजा 

Copyrights reserved!

Protected by Copyscape Web Plagiarism Checker