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Sunday, June 24, 2012

वो बचपन का सावन ........


याद आते है वो दिन,
वो नादानियां, वो बचपन.......
वो छप छप की आवाज़,
वो पानी की बौछारें, 
वो बूंदों का गिरना,
वो बारिश की पहली मुस्कान.......
वो छत पे नाचना गाना,
हंगामा और शोर मचाना,
करना अजीब हरकतें,
वो दोस्तों का लड़कपन.......
याद आते है वो दिन,
वो नादानियां, वो बचपन........
सावन की पहली बारिश में,
वो खिडकियों से दूर,
सबको नाचते देखना,
वो मिटटी की खुशबू   ,
वो गर्मागर्म पकवान.......
है अब भी वही बारिश,
है अब भी वही सावन......
याद आते है तो बस,
    वो नादानियां,  वो बचपन.........

--जसमीत

Thursday, June 21, 2012

मौत को ढूँढती ये जिंदगी , न जाने कब रुक जाएगी .


साँसों  के  पुल  पर  लडखडाती , 

हर  पल  को  बस  चलती  जाती  ,
मौत  को  ढूँढती  ये  जिंदगी  ,
न  जाने  कब  रुक  जाएगी .

जब  ये  गर्म  जिस्म ,
उन  ठंडी  बाहों  में  समां  जायेगा ,
इन  गर्म  साँसों  के  सिवा ,
जब  वो  ठंडी  स्वास  का  सागर  बहार  आएगा ,
न  गम  , न  ख़ुशी  ,
जब  मुझको  छु  पायेगी  ,
न  आसूं  , न  हसी  ,
जब  मुझको  रोक  पाएंगी ,
जब  निभाऊंगा  मैं  वादा  ,
जो  किया  था  मेरी  ज़िन्दगी  ने  मौत  से ,
जब  मिलेगा  मेरा  पालना ,
मेरी  ही  सेझ  से ,
तब  फिर  मेरी  ज़िन्दगी ,
मुझे  देख  के  मुस्कुराएगी ,
मौत  को   ढूँढती  ये  ज़िन्दगी  ,
जाने  कब  रुक  जाएगी .

Tuesday, June 19, 2012

ये जरुरी तो नही ...........


जो दिल की हर ख्वाइश है, वो पूरी ही हो,
ये जरुरी तो नहीं!
हम प्यासे ही रह जाये तो क्या गम है,
सागर मिल जाये मुझे,
ये जरुरी तो नही!
है हौसला अगर दिल में,
तो  एक दिया ही काफी है,
चाँद तारो से ही रौशनी हो,
ये जरुरी तो नही!
कुछ तो सांसें हो ओरो के नाम,
अपनी खातिर ही हम जिए,
ये जरुरी तो नहीं!
इस कदर ओरो के गम से, है पलके मेरी भीगी,
मेरे दर्द में भी सब आंसू बहाए,
ये जरुरी तो नही!

-- जसमीत


Monday, June 11, 2012

जीने न दे किसी को , इंसान की हर सांस मांग ले|

ये कविता हमारे घूसखोर नेता और सरकारी अफसरों के लिए लिखी गयी है |

मिले तो हर हद की हद मांग ले ,
मिले तो सरहदों से सरहद मांग ले,
एक जिद्दी की जिद्द मांग ले,
खाली इंसान की फुरकत मांग ले|

एक माँ का लाल मांग ले,
इन्सान की उसकी खाल मांग ले,
शरीफ से उसकी शान मांग ले ,
एक नारी से उसका मान मांग ले|

मरते की जान मांग ले,
एक अघोरी से उसकी भांग मांग ले,
जलते की चिता की आच मांग ले,
एक विवाहिता की मांग मांग ले|

चलते की रफ़्तार मांग ले,
लड़ते की तलवार मांग ले,
गाते की हर ताल मांग ले,
उलझे की जलजाल मांग ले|

बढते की बढौती मांग ले,
बुजुर्ग की बुढौती मांग ले,
सफ़ेदपोश की सच्चाई मांग ले,
शरीफ की हर पाई मांग ले|

एक सैनिक की गोली मांग ले,
एक व्यापारी से उसकी बोली मांग ले,
एक बच्चे से उसका बच्पन्न मांग ले,
मिले तो इन्सान का हर पल  मांग ले|

मांगने को मिले तो सपने मांग ले,
एक अकेले के हर अपने मांग ले,
रहने को मांगे तो एक कमरा मांगे,
मिले तो किसी की रहगुजर रहना मांग ले|

जीवन से जिंदगी मांग ले,
फ़कीर से उसकी बंदगी मांग ले,
तंग इंसान की फुर्सत मांग ले,
खाली इंसान की फुरकत मांग ले|

एक साधू से उसकी रूहाई मांग ले,
एक सागर से उसकी गहराई मांग ले,
संकट से संकट की भरपाई मांग ले,
उस खुदा से उसकी खुदाई मांग ले|

जीने न दे किसी को ,
इंसान की हर सांस मांग ले| 

Thursday, June 7, 2012

वो उडते से धुए


वो  उडते  से  धुए ,
और  वो   धुए   से  बादल ,
मौज  में  उड़ते  और  रंग  बदलते  पल  पल ,
वो  रंग  बदलते  बादल  ,
और  वो  पूरे  चाँद  की  रात .
पूरे  चाँद  पर  से  गुजरते  बादल ,
और  उनकी  हरकत .
वह  रे  उनकी  फुरकत  वह  रे  हिम्मत .

और  वो  पूरा  चाँद ,
कुच्छ  छिपता  सा  ,
शर्माता  सा .
पगला  सा , इठलाता  सा .
शर्मीली  बाला  सा  लग  रहा  है .
बादलो  का  घूंघट  बना  के ,
अपना  मुक्ख  छुपता  सा .
वह  रे  यह  बावरा  सा .

और  वो  मध्मास्त  लहराती  सी  हवा ,
और  वो  उनके  झोके ,
कभी  छूते  मेरे  चेहरे  को ,
और  फिर  कभी  चाँद  के  उस  घूँघट  को ,
रंग  उदा  देते  है  उस  का ,
देखो  उसे , काले  से  श्वेत  हो  गया  वो  घूँघट .
और  रंग  लायी  इस  हवा  की  ज़ेह्मत्त ,
मुख  दिखाया  चाँद  ने  हटा  के  अपना  घूँघट .

 वो  चाँद  , वो  धुआं ,
और  वो   धुए   से  उड़ते  बदल ,
वो  हवा , उसकी  शरारत  ,
और  हवा  से  उड़ता  वो  घूँघट ,
वो  सुहाने  पल ,
और  इनकी  रहमत ,
जगाते   है  बस  एक  हसरत ,
वैसे  ही  रुक जाए ,
इस  वक़्त  की  बरक्कत .
ठहर  जाये  ये  समा ,
ऐसे  ही  रह  जाए  ये  जहाँ  हमेशा .

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