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Sunday, November 4, 2012

कल मैं अपने कल से मिला।



कल  मैं  अपने  कल से मिला ,
आते गुजरते हर एक पल से मिला ,
मिला उस बालक की उम्मीद भरी आखों से ,
उस बूढ़े शरीर जर्जर से मिला,
कल  मैं  अपने  कल से मिला।

मिला उन् पैदा होती उमीदो से,
जो पाली थी मैंने अपने बच्चपन में,
कभी सैर करना बादलो पे,
कभी जाना उस पार गगन में,
उन सारे जीवन से भरे पालो से,
उन सारे सुन्हेरे पालो से दलदलो से,
उस बाघ से जिसका हर पुष्प था खिला,
कल  मैं  अपने  कल से मिला।

मिला मैं फिर उस वृद्ध इंसान से,
जीवन के पड़ाव पे खड़े खुद के सारांश से,
बुझी सी उन आखों से,
कुछ कही कुछ अनकही बातों से,
आखों में आसू लिए उस जीवन कम से,
जीवन को जीवन न बना पाने के उस गम से,
डूबी उम्मीदों से,और उनका उठता जलजला,
कल  मैं  अपने  कल से मिला।

फिर मिला मैं उस पल से,
ठहरी हुई सी उस हलचल से,
जो रुका था इस विश्वास से,
अपनाए जाने के उल्लास से,
उस पल का नाम अज था,
उसका सिर्फ एक ही साज़ था,
बीते कल में तूने कल ही चिंता की,
आते कल में तूने बीते कल की व्यथा ली,
भुला दिया तुमने जीना जिस पल में था,
और चलता रहा यही कल का सिलसिला ,
समझा मैं जब सच को,
तो मैं अपने आज से मिला।

Monday, October 22, 2012

सफ़र ज़िन्दगी का है अभी बाकी .......


वक़्त की है रफ़्तार तेज,
है उम्र का  तकाज़ा भी,
बड़ रहे है दोनों यूँ ही आगे,
    इम्तिहान ज़िन्दगी का है अभी बाकी .........

ठहराव सा है कुछ लहरों में,
गति भी है अभी मंद सी,
जो बहना चाहती है तिव्रमयी,
      उन लहरों की पहचान है अभी बाकी..............

सफ़र ज़िन्दगी का है बहुत लम्बा,
कठनाइयों से रास्ते है भरे हुए,
किस्मत की लकीरे भले हो हाथों में,
      कठिन रास्तों का सफ़र है अभी बाकी...........
  
उमंगो के परिंदों ने फरफराना किया शुरू,
गिर कर संभलना भी सिखा है तभी,
पार किया है अभी तो गहरे समंदरों को,
अभी तो है पूरा आसमां बाकी ............

 सफ़र ज़िन्दगी का है अभी बाकी .......
//जसमीत 

Monday, August 13, 2012

ढूँढता हूँ



अभी  भी   ढूँढता  हु  उस  रात  को ,
जो  कभी  सुबह  होने  नहीं  देगी ,
अब  भी   ढूँढता  हूँ  उस  तन्हाई  को ,
जो  शोर  के  आगोश  में  खुद  को  खोने  न  देगी ,
हँसा  तो  मैं  भी  बहुत  था  अपने  ही  गमो  पर ,
पर   ढूँढता   हु  अभी  भी  वो  ज़िन्दगी ,
जो  आंसुओ  से  खुद  को  भिगोने  न  देगी .


मिलेगी  कहाँ  वो  ख़ुशी ,
जो  गम  को  खुद  का  गला  घोटने  न  देगी ,
और  मिलेगी  कहाँ  वो  सुबह  जो ,
शाम  के  धागे  में  खुद  को  पिरोने  न  देगी .
मंजिलो  से  मिल  चूका  हु  अब  मैं  भी  कई  बार ,
पर  अब   ढूँढता  हु  वो  राह  ,
जो  मंजिलो  पर  खुद  को  ख़त्म  होने  न  देगी .


कहाँ  मिलेगी  वो  समाप्ति ,
जो  मृत्यु  स्वयं  को  बोलने  न  देगी ,
कहाँ  मिलेगी  वो  हसी ,
जो  होठो  तक  खुद  को  समितने  न  देगी .
कई  लहरों  को  मिलते  देखा  है  मैंने  नदी  से ,
पर  अब   ढूँढता  हु  मैं  वो  नदी ,
जो  सागर  में  अपने  अस्तित्वा  को  खोने  न  देगी .
अभी  भी   ढूँढता  हूँ  मैं   उस  रात  को  ,
जो  कभी  सुबह  होने  न  देगी |

Friday, July 20, 2012

दिल से......

दिल से : सिक्रेट्स ऑफ़ दा हिंदी  पोएट्री  ब्लोगर्स  हार्ट 

मैं दिल से सुबहोजी का धन्यवाद करना चाहती हूँ जिन्होंने हिंदी भाषा और ब्लोगर्स के लिए दिल से पोस्ट के जरिये  एक नयी शुरआत की है
इनके पोस्ट और ब्लॉग बेहत जानकारी पूर्वक होते है. किसी भी तरह का सुझाव बड़ी सरलता से पेश करते है.
हिंदी सुबहोजी के लिए भले ही थोड़ी कठिन हो लेकिन उनका प्रयास जरुर आगे तक जायेगा.
 मुझे बेहत प्रेरणा मिली है इस पोस्ट के जरिये और मैं चाहती हूं की हिंदी के प्रति जो रुझान लोगो में शेष है वो शेष न रहकर उच्च कोटि के स्तर सराहा पर जाये.

आभारी 
जसमीत 

Wednesday, July 18, 2012

ये स्तुति का अंत है

ये कविता हमारे विश्व की वर्तमान स्थिति के लिए लिखी गयी है 


आकृति से विकृति ,
अर्थ से अनर्थ है,
शब्द ही निशब्द है,
ये स्तुति का अंत है|

सम से असम है,
रक्त से सशक्त है,
उलझने प्रचंड है,
ये स्तुति का अंत है|

राम पर विराम है,
लक्ष्मी को प्रणाम है,
खंड से विखंड है,
ये स्तुति का अंत है|

वस्त्र ही निवस्त्र है ,
रंक ये कलंक है,
असत्य यहाँ संत है,
ये स्तुति का अंत है|

पूर्ण ये अपूर्ण है,
पूर्व ये अपूर्व है,
रोचकता ही बस मंत्र है,
ये स्तुति का अंत है|

Friday, July 13, 2012

बांवरा मन ............


बांवरा सा मन है मेरा,
ख्वाब है इसके बहुत बड़े,
कहता रंगभरी हो दुनिया, 
     और ज़िन्दगी खुशियों से भरे .......

कभी करता मन पंछी बन .
आसमां में उडती फिरू,
आशाओं की चादर ओड़,
         इक और जन्म मैं फिर से जियूं .......

कभी मन करता,
भंवर बन जाऊं,
फूलों की खुशबु से अपने,
         तन मन को महकाऊं ........

मिलता जब ठंडी हवा का झोंका,
करता मन फिर सागर बन जाऊ,
अपनी बहती लहरों से,
    सबके दिल को ठंडक पहुचाऊ.....

बांवरा सा मन है मेरा ,
चंचल है इसकी बातें,
कभी देखता दिन में सपने,
             काटता सारी जाग के रातें .............

होती इसकी सहर निराली,
सुबह सवेर बदलता रूप,
देख के बूंदों की झलक,
        बन जाता सतरंगी धुप .........

है भले बांवरा मन मेरा,
अकुलाये पलो को भी जीता है,
ना आता रोष इसे, 
ना दिल कभी यूँ रोता है .......
बांवरा सा मन है,
बस  ख्वाब  बड़े देखता है!

-- जसमीत

Sunday, July 1, 2012

आंसू

आंसू बहता है ,ये सभी जानते है,
जाता कहाँ है , क्या सोचा किसी ने?
छुपा है आँखों में,देखते है सभी,
कहता है क्या ये, क्या सोचा किसी ने?

हसता किसी को,रुलाता किसी को,
पर समझाता है क्या, क्या सोचा किसी ने?
कर देता है बयान , ख़ुशी या गम मन के,
पर छुपता है क्या, क्या सोचा किसी ने?

करा देता है चाहे, किसी से कुछ भी,
पर चाहता है क्या, क्या सोचा किसी ने ?
बहता है पानी, बहता है आसूं ,
फर्क है क्या इनमे,क्या सोचा किसी ने? 

निकाल देता है गम ये, जो दिल में छुपा है ,
है अमृत ये कैसा , क्या सोचा किसी ने?
कर देता है हल्का पल भर में , इस भारी से दिल को,
क्या चीज़ है ये आसूं , क्या सोचा किसी ने?

Sunday, June 24, 2012

वो बचपन का सावन ........


याद आते है वो दिन,
वो नादानियां, वो बचपन.......
वो छप छप की आवाज़,
वो पानी की बौछारें, 
वो बूंदों का गिरना,
वो बारिश की पहली मुस्कान.......
वो छत पे नाचना गाना,
हंगामा और शोर मचाना,
करना अजीब हरकतें,
वो दोस्तों का लड़कपन.......
याद आते है वो दिन,
वो नादानियां, वो बचपन........
सावन की पहली बारिश में,
वो खिडकियों से दूर,
सबको नाचते देखना,
वो मिटटी की खुशबू   ,
वो गर्मागर्म पकवान.......
है अब भी वही बारिश,
है अब भी वही सावन......
याद आते है तो बस,
    वो नादानियां,  वो बचपन.........

--जसमीत

Thursday, June 21, 2012

मौत को ढूँढती ये जिंदगी , न जाने कब रुक जाएगी .


साँसों  के  पुल  पर  लडखडाती , 

हर  पल  को  बस  चलती  जाती  ,
मौत  को  ढूँढती  ये  जिंदगी  ,
न  जाने  कब  रुक  जाएगी .

जब  ये  गर्म  जिस्म ,
उन  ठंडी  बाहों  में  समां  जायेगा ,
इन  गर्म  साँसों  के  सिवा ,
जब  वो  ठंडी  स्वास  का  सागर  बहार  आएगा ,
न  गम  , न  ख़ुशी  ,
जब  मुझको  छु  पायेगी  ,
न  आसूं  , न  हसी  ,
जब  मुझको  रोक  पाएंगी ,
जब  निभाऊंगा  मैं  वादा  ,
जो  किया  था  मेरी  ज़िन्दगी  ने  मौत  से ,
जब  मिलेगा  मेरा  पालना ,
मेरी  ही  सेझ  से ,
तब  फिर  मेरी  ज़िन्दगी ,
मुझे  देख  के  मुस्कुराएगी ,
मौत  को   ढूँढती  ये  ज़िन्दगी  ,
जाने  कब  रुक  जाएगी .

Tuesday, June 19, 2012

ये जरुरी तो नही ...........


जो दिल की हर ख्वाइश है, वो पूरी ही हो,
ये जरुरी तो नहीं!
हम प्यासे ही रह जाये तो क्या गम है,
सागर मिल जाये मुझे,
ये जरुरी तो नही!
है हौसला अगर दिल में,
तो  एक दिया ही काफी है,
चाँद तारो से ही रौशनी हो,
ये जरुरी तो नही!
कुछ तो सांसें हो ओरो के नाम,
अपनी खातिर ही हम जिए,
ये जरुरी तो नहीं!
इस कदर ओरो के गम से, है पलके मेरी भीगी,
मेरे दर्द में भी सब आंसू बहाए,
ये जरुरी तो नही!

-- जसमीत


Monday, June 11, 2012

जीने न दे किसी को , इंसान की हर सांस मांग ले|

ये कविता हमारे घूसखोर नेता और सरकारी अफसरों के लिए लिखी गयी है |

मिले तो हर हद की हद मांग ले ,
मिले तो सरहदों से सरहद मांग ले,
एक जिद्दी की जिद्द मांग ले,
खाली इंसान की फुरकत मांग ले|

एक माँ का लाल मांग ले,
इन्सान की उसकी खाल मांग ले,
शरीफ से उसकी शान मांग ले ,
एक नारी से उसका मान मांग ले|

मरते की जान मांग ले,
एक अघोरी से उसकी भांग मांग ले,
जलते की चिता की आच मांग ले,
एक विवाहिता की मांग मांग ले|

चलते की रफ़्तार मांग ले,
लड़ते की तलवार मांग ले,
गाते की हर ताल मांग ले,
उलझे की जलजाल मांग ले|

बढते की बढौती मांग ले,
बुजुर्ग की बुढौती मांग ले,
सफ़ेदपोश की सच्चाई मांग ले,
शरीफ की हर पाई मांग ले|

एक सैनिक की गोली मांग ले,
एक व्यापारी से उसकी बोली मांग ले,
एक बच्चे से उसका बच्पन्न मांग ले,
मिले तो इन्सान का हर पल  मांग ले|

मांगने को मिले तो सपने मांग ले,
एक अकेले के हर अपने मांग ले,
रहने को मांगे तो एक कमरा मांगे,
मिले तो किसी की रहगुजर रहना मांग ले|

जीवन से जिंदगी मांग ले,
फ़कीर से उसकी बंदगी मांग ले,
तंग इंसान की फुर्सत मांग ले,
खाली इंसान की फुरकत मांग ले|

एक साधू से उसकी रूहाई मांग ले,
एक सागर से उसकी गहराई मांग ले,
संकट से संकट की भरपाई मांग ले,
उस खुदा से उसकी खुदाई मांग ले|

जीने न दे किसी को ,
इंसान की हर सांस मांग ले| 

Thursday, June 7, 2012

वो उडते से धुए


वो  उडते  से  धुए ,
और  वो   धुए   से  बादल ,
मौज  में  उड़ते  और  रंग  बदलते  पल  पल ,
वो  रंग  बदलते  बादल  ,
और  वो  पूरे  चाँद  की  रात .
पूरे  चाँद  पर  से  गुजरते  बादल ,
और  उनकी  हरकत .
वह  रे  उनकी  फुरकत  वह  रे  हिम्मत .

और  वो  पूरा  चाँद ,
कुच्छ  छिपता  सा  ,
शर्माता  सा .
पगला  सा , इठलाता  सा .
शर्मीली  बाला  सा  लग  रहा  है .
बादलो  का  घूंघट  बना  के ,
अपना  मुक्ख  छुपता  सा .
वह  रे  यह  बावरा  सा .

और  वो  मध्मास्त  लहराती  सी  हवा ,
और  वो  उनके  झोके ,
कभी  छूते  मेरे  चेहरे  को ,
और  फिर  कभी  चाँद  के  उस  घूँघट  को ,
रंग  उदा  देते  है  उस  का ,
देखो  उसे , काले  से  श्वेत  हो  गया  वो  घूँघट .
और  रंग  लायी  इस  हवा  की  ज़ेह्मत्त ,
मुख  दिखाया  चाँद  ने  हटा  के  अपना  घूँघट .

 वो  चाँद  , वो  धुआं ,
और  वो   धुए   से  उड़ते  बदल ,
वो  हवा , उसकी  शरारत  ,
और  हवा  से  उड़ता  वो  घूँघट ,
वो  सुहाने  पल ,
और  इनकी  रहमत ,
जगाते   है  बस  एक  हसरत ,
वैसे  ही  रुक जाए ,
इस  वक़्त  की  बरक्कत .
ठहर  जाये  ये  समा ,
ऐसे  ही  रह  जाए  ये  जहाँ  हमेशा .

Tuesday, May 15, 2012

ये ज़िन्दगी भी क्या चीज़ है .

यूँ ही सोचते सोचते ,
नज़र पड़ी जब खुद पर ,
हैरान हु मैं देखकर ,
की ये ज़िन्दगी  भी  क्या  चीज़  है . 

खुदा  के  इस  जहाँ  में ,
इंसान  बन  कर  आया  था ,
दुनिया  ने  क्या  क्या  बनाया ,
ये  खुद  भी  न  समझ  पाया  हु ,
रहत  की  साँसे  कितनी  महंगी  है ,
ये  अब  पता  लगा  है ,
इस  ज़िन्दगी  की  होद्ध  में ,
ये  बंदगी  भी  क्या  चीज़  है .
हैरान  हु  मैं  देख  कर ,
की  ये  ज़िन्दगी  भी  क्या  चीज़  है .


रहमत  है  की  हु  अभी  भी ,
दुरुस्त  इस  ज़हन  से  ,
न  जाने  क्या  क्या  है  छुपा ,
इस  ज़हन  के  इस  कफ़न  में  ,
अभी  जिंदा  हु  तो  जानता  हु ,
की  जीना  भी  जरूरी  है ,
ये  जिंदा  रहने  की  हसरत ,
ज़िन्दगी  की  आशिकी  भी  क्या  चीज़  है .
हैरान  हु  मैं  देख  कर ,
की  ये  ज़िन्दगी  भी  क्या  चीज़  है .


उम्मीद  का  ये  दरिया  सा ,
कुच्छ  मैंने  खुद  ,
 कुछ  इस  जहाँ  ने  बना  दिया ,
गफलत  में  हु  मैंने  ,
ये  डूबने  का  सामान  क्यों  बना  दिया ,
हाँ  मुझे  चलना  तो ,
मेरे  दो  खुदा  ने  सिखा  दिया ,
पर  अब  चलता  ही  रहता  हु ,
ये  आवारगी  भी  क्या  चीज़  है .
हैरान  हु  मैं  देख  कर ,
की  ये  ज़िन्दगी  भी  क्या  चीज़  है .

सपना.........



मैंने कल एक सपना देखा,
दूर खड़ा कोई अपना देखा ...........

भीनी भीनी खुशबू लेकर आई जब  ठंडी हवा,
आशाओ की लहरों को मैंने सर सर कर  उमड़ते देखा ..........
हाँ मैंने एक ऐसा सपना देखा , दूर खड़ा कोई अपना देखा ...........

बरसातों की बूंदे जैसे टप टप करती गिरती हैं ,
उन बूदों से आशाओं का सागर मैंने भरता देखा ............
हाँ एक ऐसा सपना देखा , दूर खड़ा कोई अपना देखा .............

देखी उस सपने से उमंगें , पंछी बन फर्फराते कैसे  ,
पंख खोल कर भर चित करके फड फड उनको उड़ते देखा ..........
हाँ एक ऐसा सपना देखा , दूर खड़ा कोई अपना देखा ................

मन मेरा भी करता पंछी बन मैं आसमान में उडती फिरु,
आशाओं की उड़ान भर हाँ मैंने एक सपना  देखा ...........
दूर खड़ा कोई अपना देखा ..................


// जसमीत


Friday, May 4, 2012

रिश्ते .............


वक़्त की आंच पे, 
पिघल जाते है रिश्ते
ना रखो ख्याल,
तो बदल जाते है रिश्ते
कभी और लेते है खुशनुमा रंगों को,
कभी बदरंग से हो जाते है रिश्ते...........
करते है पार सभी हदों को,
कभी दायरे में सिमट जाते हैं रिश्ते
कभी समुंदर सी गहराई तो,
कभी मंद लहरों से हो जाते है रिश्ते 
होते है नाजुक कड़ी से,
              एक ठोकर से बिखर जाते है रिश्ते..........

जसमीत कुकरेजा 

Monday, April 30, 2012

अभिव्यक्ति........


व्यक्ति बिना अभिव्यक्ति,
जैसे मौत बिना मुक्ति!

जन्म लेकर शिशु करता है,
मां की ममता की त्रिप्ति,
रुदन से करता है वो,
अपने भावो की अभिव्यक्ति.........

रूप होते है अनेक जब होती है,
मानव की उत्पति,
ममता की ठंडी छाव में,
होती है मासूमियत की अभिव्यक्ति........

मां का अंचल छोड़ ,
करता है क्रीडा में मस्ती,
करता है अपने आँगन में,
भिन प्रकार की अभिव्यक्ति........

क्रीडा के मैदान में,
होती है उसकी वृद्धि,
निकलता है वो दिखाने,
मानवता की अभिव्यक्ति.........

मानवता की होड़ में,
पाता है योवन की हस्ती,
रोध, क्रोध के भावो में,
करता है अपने हृदय की अभिव्यक्ति...........

लगती है मीठी हर सुबह,
और सुनहरी शाम के भावों में,
हो जाता है गुम,
करता है अपने प्यार की अभिव्यक्ति............

उम्र है निकलती योवन की,
आँखों का नूर ढलकता है,
इश्वर की भक्ति में,
समर्पित करता है अपनी अभिव्यक्ति..........

             यही है जीवन , यही सोच है..............
व्यक्ति बिना अभिव्यक्ति,
जैसे मौत बिना मुक्ति!

जसमीत 

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