क्या रंजिश थी मेरे ए-खुदा!
जो उसके जाने का एहसास मुझे ग्वारा नहि,
क्यू देखती है आँखें वो रास्ता,
जिनके खत्म होने का कोइ इशारा नही..........
हान जानती हूँ मैं ये काफिला चलता रहेगा,
उसकी यादों के साथ वक्त बदलता रहेगा,
दिन होगा. सेहेर बीतेगी, और अन्धेरे के जाने का,
मुझे इस तरह हर रोज़ इंतज़ार भीरहेगा...........
लोग मिलते है, बिछडते है,
कुछ यूहीं अपनी परछाइयाँ छोड़ जते है,
ना चाहो फिर भी दिल लगा लेते है हम,
ओर फिर दिल लगाने वाले, मुँह फेर निकल जाते है...........
क्या रुस्वाई थी मुझसे ए-खुदा!
जो बिछडने का सबब दे दिया,
मोह्हबत के पैग़ाम में कुछ हासिल ना हुआ,
तो उम्र भार का बेतलब इंतज़ार दे दिया................
जो उसके जाने का एहसास मुझे ग्वारा नहि,
क्यू देखती है आँखें वो रास्ता,
जिनके खत्म होने का कोइ इशारा नही..........
हान जानती हूँ मैं ये काफिला चलता रहेगा,
उसकी यादों के साथ वक्त बदलता रहेगा,
दिन होगा. सेहेर बीतेगी, और अन्धेरे के जाने का,
मुझे इस तरह हर रोज़ इंतज़ार भीरहेगा...........
लोग मिलते है, बिछडते है,
कुछ यूहीं अपनी परछाइयाँ छोड़ जते है,
ना चाहो फिर भी दिल लगा लेते है हम,
ओर फिर दिल लगाने वाले, मुँह फेर निकल जाते है...........
क्या रुस्वाई थी मुझसे ए-खुदा!
जो बिछडने का सबब दे दिया,
मोह्हबत के पैग़ाम में कुछ हासिल ना हुआ,
तो उम्र भार का बेतलब इंतज़ार दे दिया................
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeletebeautifully penned................
anu
Wonderful Jasmeet!
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