ज़िंदगी
भी एक अजीब सी पहेली है,
कभी
है अंजान,
कभी
बनती सहेली है....
सब
कुछ पाकर भी परेशान हर इंसान
है,
है
क्या ज़रूरत जानवरो की,
जब
इंसान ही बना बैठा हैवान है...
ख्याल
आता है मेरे
ज़हन में कुछ इस
तरह...
जो चाहा वो कभी क्यू मिलता नही,
ओर
जो मिलता है वो रास कभी आता
नही....
चलती
है ज़िंदगी की गाड़ी फिर भी
यूही,
अजीब
पहेली है ये,
जिसे
कोई सुलझा पाता नही...
सपने
देखना तो हर इंसान की फितरत
है,
टूट
कर बिखरना,
हर
सपने की हरकत है...
सुना
है मैने टूटते तो अंडे और वादे
भी है
होती
है कामयाब कोशिशे,जिनके
होते मज्बूद इरादे है...
समझोते
का ही असल नाम है ज़िंदगी,
वक़्त
की रफ़्तार से जो जीना सिख ले,
कहलाता
है जीत का सिकंदर भी वही....
पैसा
ही नही होता इंसान की पहचान
दोस्तों,
प्यार
की डोर से बनते है रिश्ते सभी...
श्रधा
हो तो पूजा पाठ सब माया है,
कहते
है सभी,
कण
कण में
बसते भगवान है,
मिल
जाये अगर
माँगने पे सब कुछ ,
तो
कह दो कि,
बेजान
पथरो में भी जान है..
हाए!
कैसी
है पहेली ये ज़िंदगी,
कभी
हसाती है तो कभी रूलाती है,
जो
मुस्कुरा कर जीना सिख ले,
ज़िंदगी
उनके आगे सर झुकती है....
Isi ka naam jindagi hai ... Lajwab geet ...
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