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Wednesday, July 16, 2014
सितम-ए-मुहब्बत ......
दुनिया मशगूल है सितम-ए-दिल कि बेपरवाह आश्कीयो में,
और हम बेवजे पत्थर को मुहब्बत बना बैठे..
धीरे-धीरे चलता रहा यूँही एक सिल्सला,
मंज़िल के करीब होकर फिर रास्ता भूला बैठे!!!
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