Sunday, July 27, 2014
Wednesday, July 23, 2014
मैं कविता हूँ ...
मैं ग़ालिब नही, गुलजार नही,
हर हृदय की मैं वक्ता हूँ...
मैं खुशी नही, कोइ पीड़ा नही,
भावों से भरी सेहजता हूँ...
मैं दिन नही, रात नही,
हर पहर में बसती माया हूँ...
मैं हिन्दु नही, मुस्लिम नही,
सरे धर्मों की मैं छाया हूँ...
मैं भाव नही, रोष नही,
सहमी नदि का सैलाब हूँ...
मैं नींद नही, जाग नही,
सोती जागती आँखों का ख्वाब हूँ...
मैं ग़ालिब नही, गुलजार नही,
हर हृदय की मैं वक्ता हूँ...
मैं गीत नही, कोई ग़ज़ल नही
मैं तो बस एक कविता हूँ!!!
हर हृदय की मैं वक्ता हूँ...
मैं खुशी नही, कोइ पीड़ा नही,
भावों से भरी सेहजता हूँ...
मैं दिन नही, रात नही,
हर पहर में बसती माया हूँ...
मैं हिन्दु नही, मुस्लिम नही,
सरे धर्मों की मैं छाया हूँ...
मैं भाव नही, रोष नही,
सहमी नदि का सैलाब हूँ...
मैं नींद नही, जाग नही,
सोती जागती आँखों का ख्वाब हूँ...
मैं ग़ालिब नही, गुलजार नही,
हर हृदय की मैं वक्ता हूँ...
मैं गीत नही, कोई ग़ज़ल नही
मैं तो बस एक कविता हूँ!!!
Tuesday, July 22, 2014
Wednesday, July 16, 2014
Monday, July 14, 2014
मेरी कलम...
जब भी होता है दिल उदास,
दिल के होती है सबसे खास,
मेरी कलम....
ना देखे ये दिन, ना देखे रात,
करती है हर वक्त मुझसे बात,
मेरी कलम....
दुखों के काले बादल में देती है साथ,
खुशियों के सागर में हाथों में डालें हाथ,
मेरी कलम....
बरसे बादल तो मोर की तरह नाचती,
बिलखाती, मचलाती , सबकी ह्साती,
मेरी कलम...
रुक जाएँ चाहे ये साँसें क्यूं ही ,
सँवरती रहे लिखती रहे यूँही,
मेरी कलम...
Friday, July 11, 2014
इंतज़ार..........
क्या रंजिश थी मेरे ए-खुदा!
जो उसके जाने का एहसास मुझे ग्वारा नहि,
क्यू देखती है आँखें वो रास्ता,
जिनके खत्म होने का कोइ इशारा नही..........
हान जानती हूँ मैं ये काफिला चलता रहेगा,
उसकी यादों के साथ वक्त बदलता रहेगा,
दिन होगा. सेहेर बीतेगी, और अन्धेरे के जाने का,
मुझे इस तरह हर रोज़ इंतज़ार भीरहेगा...........
लोग मिलते है, बिछडते है,
कुछ यूहीं अपनी परछाइयाँ छोड़ जते है,
ना चाहो फिर भी दिल लगा लेते है हम,
ओर फिर दिल लगाने वाले, मुँह फेर निकल जाते है...........
क्या रुस्वाई थी मुझसे ए-खुदा!
जो बिछडने का सबब दे दिया,
मोह्हबत के पैग़ाम में कुछ हासिल ना हुआ,
तो उम्र भार का बेतलब इंतज़ार दे दिया................
जो उसके जाने का एहसास मुझे ग्वारा नहि,
क्यू देखती है आँखें वो रास्ता,
जिनके खत्म होने का कोइ इशारा नही..........
हान जानती हूँ मैं ये काफिला चलता रहेगा,
उसकी यादों के साथ वक्त बदलता रहेगा,
दिन होगा. सेहेर बीतेगी, और अन्धेरे के जाने का,
मुझे इस तरह हर रोज़ इंतज़ार भीरहेगा...........
लोग मिलते है, बिछडते है,
कुछ यूहीं अपनी परछाइयाँ छोड़ जते है,
ना चाहो फिर भी दिल लगा लेते है हम,
ओर फिर दिल लगाने वाले, मुँह फेर निकल जाते है...........
क्या रुस्वाई थी मुझसे ए-खुदा!
जो बिछडने का सबब दे दिया,
मोह्हबत के पैग़ाम में कुछ हासिल ना हुआ,
तो उम्र भार का बेतलब इंतज़ार दे दिया................
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