सुलझा सकता जो उन होठो की सिलवटों को,
और खीच देता उन दो लकीरों को,
मुस्कान कहती दुनिया उसे,
मेरे लिए तो ज़िन्दगी होती.....
कर देता वो ब्यान,
जो भी है इस दिलके अरमान,
दीवानापन कहती दुनिया उसे,
मेरे लिए तो बंदगी होती,
रोक देता वो लहर,
जो आती उन आँखों पर,
बेवकूफी कहती दुनिया उसे,
मेरे लिए आवारगी होती,
कह देता तुमसे मैं वो,
छुटला न सकता कोई जो,
नासमझी कहती दुनिया उसे,
मेरे लिए तो दीवानगी होती......
--मलय
और खीच देता उन दो लकीरों को,
मुस्कान कहती दुनिया उसे,
मेरे लिए तो ज़िन्दगी होती.....
कर देता वो ब्यान,
जो भी है इस दिलके अरमान,
दीवानापन कहती दुनिया उसे,
मेरे लिए तो बंदगी होती,
रोक देता वो लहर,
जो आती उन आँखों पर,
बेवकूफी कहती दुनिया उसे,
मेरे लिए आवारगी होती,
कह देता तुमसे मैं वो,
छुटला न सकता कोई जो,
नासमझी कहती दुनिया उसे,
मेरे लिए तो दीवानगी होती......
--मलय
बहुत खूब लिखा आपने | बधाई
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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Beautifully scribbled.....awesome...
ReplyDeletebtw who is Malay the poet!!
Thanks Hemant. Yes we both write in this blog
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