ना जाने क्यूँ इन तन्हाईयों से
कुछ रिश्ता सा लगता है,
तेरे बगेर जिंदगी का हर
पल बिछड़ा सा लगता है........
कुछ तो रही होगी बात
जो हुई वो छोटी सी मुलाकात,
इस तरह यूँही कोइ भी,
राहगीर नहीं अपना सा लगता है......
सोचती हूँ जब भी कि
कैसा वो इतेफाक था,
कि अन्जना सा रास्ता भी,
अब पेह्चना सा लगता है...
कभी कभी मिल जाते है
कुछ लोग इस कदर,
बिछड़ के फिर मिलने
का अरमान सा लगता है...............
कुछ रिश्ता सा लगता है,
तेरे बगेर जिंदगी का हर
पल बिछड़ा सा लगता है........
कुछ तो रही होगी बात
जो हुई वो छोटी सी मुलाकात,
इस तरह यूँही कोइ भी,
राहगीर नहीं अपना सा लगता है......
सोचती हूँ जब भी कि
कैसा वो इतेफाक था,
कि अन्जना सा रास्ता भी,
अब पेह्चना सा लगता है...
कभी कभी मिल जाते है
कुछ लोग इस कदर,
बिछड़ के फिर मिलने
का अरमान सा लगता है...............
--जसमीत