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Tuesday, May 15, 2012

ये ज़िन्दगी भी क्या चीज़ है .

यूँ ही सोचते सोचते ,
नज़र पड़ी जब खुद पर ,
हैरान हु मैं देखकर ,
की ये ज़िन्दगी  भी  क्या  चीज़  है . 

खुदा  के  इस  जहाँ  में ,
इंसान  बन  कर  आया  था ,
दुनिया  ने  क्या  क्या  बनाया ,
ये  खुद  भी  न  समझ  पाया  हु ,
रहत  की  साँसे  कितनी  महंगी  है ,
ये  अब  पता  लगा  है ,
इस  ज़िन्दगी  की  होद्ध  में ,
ये  बंदगी  भी  क्या  चीज़  है .
हैरान  हु  मैं  देख  कर ,
की  ये  ज़िन्दगी  भी  क्या  चीज़  है .


रहमत  है  की  हु  अभी  भी ,
दुरुस्त  इस  ज़हन  से  ,
न  जाने  क्या  क्या  है  छुपा ,
इस  ज़हन  के  इस  कफ़न  में  ,
अभी  जिंदा  हु  तो  जानता  हु ,
की  जीना  भी  जरूरी  है ,
ये  जिंदा  रहने  की  हसरत ,
ज़िन्दगी  की  आशिकी  भी  क्या  चीज़  है .
हैरान  हु  मैं  देख  कर ,
की  ये  ज़िन्दगी  भी  क्या  चीज़  है .


उम्मीद  का  ये  दरिया  सा ,
कुच्छ  मैंने  खुद  ,
 कुछ  इस  जहाँ  ने  बना  दिया ,
गफलत  में  हु  मैंने  ,
ये  डूबने  का  सामान  क्यों  बना  दिया ,
हाँ  मुझे  चलना  तो ,
मेरे  दो  खुदा  ने  सिखा  दिया ,
पर  अब  चलता  ही  रहता  हु ,
ये  आवारगी  भी  क्या  चीज़  है .
हैरान  हु  मैं  देख  कर ,
की  ये  ज़िन्दगी  भी  क्या  चीज़  है .

6 comments:

  1. हैरान हूँ मैं देख कर तुम्हारी कविता, यह अल्फ़ाज़ कैसे आ जाते है जुबां तक।
    अपने दिल की बात तुमने लिख दी इस कदर, की किसी दुसरे अलफ़ाज़ न मिले मुझे जो आ सके जुबां तक।

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  2. Hi

    I liked this poem the best out of the 4 that i read. Nice creations. :)

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  3. hi JJ thanks a lot ..it has been written by Malay another author of this blog :) he will surely be glad.
    keep sharing and reviewing our blog.

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    1. ya Jasmeet , i am surely glad......... thank you to you too

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