यूँ ही सोचते सोचते ,
नज़र पड़ी जब खुद पर ,
हैरान हु मैं देखकर ,
की ये ज़िन्दगी भी क्या चीज़ है .
खुदा के इस जहाँ में ,
इंसान बन कर आया था ,
दुनिया ने क्या क्या बनाया ,
ये खुद भी न समझ पाया हु ,
रहत की साँसे कितनी महंगी है ,
ये अब पता लगा है ,
इस ज़िन्दगी की होद्ध में ,
ये बंदगी भी क्या चीज़ है .
हैरान हु मैं देख कर ,
की ये ज़िन्दगी भी क्या चीज़ है .
रहमत है की हु अभी भी ,
दुरुस्त इस ज़हन से ,
न जाने क्या क्या है छुपा ,
इस ज़हन के इस कफ़न में ,
अभी जिंदा हु तो जानता हु ,
की जीना भी जरूरी है ,
ये जिंदा रहने की हसरत ,
ज़िन्दगी की आशिकी भी क्या चीज़ है .
हैरान हु मैं देख कर ,
की ये ज़िन्दगी भी क्या चीज़ है .
उम्मीद का ये दरिया सा ,
कुच्छ मैंने खुद ,
कुछ इस जहाँ ने बना दिया ,
गफलत में हु मैंने ,
ये डूबने का सामान क्यों बना दिया ,
हाँ मुझे चलना तो ,
मेरे दो खुदा ने सिखा दिया ,
पर अब चलता ही रहता हु ,
ये आवारगी भी क्या चीज़ है .
हैरान हु मैं देख कर ,
की ये ज़िन्दगी भी क्या चीज़ है .
हैरान हूँ मैं देख कर तुम्हारी कविता, यह अल्फ़ाज़ कैसे आ जाते है जुबां तक।
ReplyDeleteअपने दिल की बात तुमने लिख दी इस कदर, की किसी दुसरे अलफ़ाज़ न मिले मुझे जो आ सके जुबां तक।
thanks sir ..
DeleteHi
ReplyDeleteI liked this poem the best out of the 4 that i read. Nice creations. :)
thanks JJ... thanks for appreciating it ...
Deletehi JJ thanks a lot ..it has been written by Malay another author of this blog :) he will surely be glad.
ReplyDeletekeep sharing and reviewing our blog.
ya Jasmeet , i am surely glad......... thank you to you too
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