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Thursday, April 30, 2015

पता नहीं कैसे सीख गई मैं...........


पता नहीं कैसे सीख गई मैं माँ,
रोटी बनाना,
अब तो गोल बना लेती हूँ।
वो भारत का नक्शा,
अब नक्शा नहीं,
पृथ्वी जैसा दिखता है।
आधा पक्का,आधा कच्चा,
सिकता था जो,
अब अच्छे से सिकता है।
न जाने कैसे मैं सीख गई माँ,
सब्जी बनाना,
जो कभी तीखी,
कभी फीकी,
कभी,
लगभग बेस्वाद सी बनती थी
अब तो,
हर एक मसाला उसमे,
बराबर डलता है
नमक बिना माप भी,
अब तो,
एकदम सही पड़ता है।
जाने कब सीख गई मैं.
तय बजट में चलाना,
हर महीने,
कपड़ों पे खर्च कर देने वाली मैं,
अब तो,
पाई पाई का हिसाब रखती हूँ।
जरुरत की चीजों की खरीदी पर भी
अब तो,
काफी कंट्रोल करती हूँ
जाने मैं सीख कैसे गई माँ,
यूँ सबका ख्याल रखना,
किसी की परवाहन करने वाली मैं,
अब सबके लिए सोचने लगी हूँ,
खुद से भी ज्यादा तो
अब मैं,
दूसरों की चिन्ता करने लगी हूँ।
और जाने कैसे सीख गई,
मैं चुप रहना,
सबकुछ यूँ चुपचाप सहना,
आप पर बात बात पे झल्लाने वाली मैं,
अब अधिकतर मौन ही रहती हूँ ,
आज गलती नहीं मेरी कोई,
सही हूँ ,
फिर भी चुपचाप सब सहती हूँ।
न जाने कैसे सीख गई
इतनी दुनियादारी,
मैं माँ,
कभी छोटी -छोटी बातों पे भी
आहत हो जाने वाली मैं,
आज बड़े बड़े दंश झेलना सीख गई,
एक छोटी सी परेशानी पर भी
फूट फूट कर रोने वाली मैं,
आज अकेले में पलकों की कोरें
गीली करना सीख गई
पता नहीं कैसे सीख गई मैं माँ
ये सब
न जाने कैसे
बस सीख ही गई...

Monday, January 19, 2015

रंग बदलती दुनिया ....

मैंने .. हर रोज .. जमाने को .. रंग बदलते देखा है ....
उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है .. !!

वो .. जो चलते थे .. तो शेर के चलने का .. होता था गुमान..
उनको भी .. पाँव उठाने के लिए .. सहारे को तरसते देखा है !!

जिनकी .. नजरों की .. चमक देख .. सहम जाते थे लोग ..
उन्ही .. नजरों को .. बरसात .. की तरह ~~ रोते देखा है .. !!

जिनके .. हाथों के .. जरा से .. इशारे से .. टूट जाते थे ..पत्थर ..
उन्ही .. हाथों को .. पत्तों की तरह .. थर थर काँपते देखा है .. !!

जिनकी आवाज़ से कभी .. बिजली के कड़कने का .. होता था भरम ..
उनके .. होठों पर भी .. जबरन .. चुप्पी का ताला .. लगा देखा है .. !!

ये जवानी .. ये ताकत .. ये दौलत ~~ सब कुदरत की .. इनायत है ..
इनके .. रहते हुए भी .. इंसान को ~~ बेजान हुआ देखा है ... !!

अपने .. आज पर .. इतना ना .. इतराना ~~ मेरे .. यारों ..
वक्त की धारा में .. अच्छे अच्छों को ~~ मजबूर हुआ देखा है .. !!!

कर सको......तो किसी को खुश करो......दुःख देते ........तो हजारों को देखा है..

Tuesday, November 25, 2014

दर्द की ज़ुबान

कोई नाराज़ है हमसे के, हम कुछ लिखते नही..
कहा से लाये लफ्ज़ जब वो मिलते नही..
दर्द की ज़ुबान होती तो बता देते वो ज़ख्म कैसे बताये जो दिखते नही !!

Sunday, July 27, 2014

तेरी आँखें...



ना जाने कौनसी कशिश है तेरी आँखो में,
ना होते हुए भी तेरे होने का एहसास दे जाती है,
खामोश रहते है मेरे लब हमेशा और
तेरी आँखो की चमक इन्हे अल्फाज दे जाती है...

Wednesday, July 23, 2014

मैं कविता हूँ ...


मैं ग़ालिब नही, गुलजार नही,
हर हृदय की मैं वक्ता हूँ...

मैं खुशी नही, कोइ पीड़ा नही,
भावों से भरी सेहजता  हूँ...

मैं दिन नही, रात नही,
हर पहर में बसती माया हूँ...

मैं हिन्दु नही, मुस्लिम नही,
सरे धर्मों  की मैं छाया हूँ...

मैं भाव नही, रोष नही,
सहमी नदि का सैलाब हूँ...

मैं नींद नही, जाग नही,
सोती जागती आँखों का ख्वाब हूँ...

मैं ग़ालिब नही, गुलजार नही,
हर हृदय की मैं वक्ता हूँ...

मैं गीत नही, कोई ग़ज़ल नही
मैं तो बस एक कविता हूँ!!!

Tuesday, July 22, 2014

खयाल......



कभी नदि किनारे बैठूँ,
तो आता है सिर्फ खयाल तेरा,
ना वादिया ना फिज़ये भाये मुझे,
    तरसे ये दिल तो बस इक दीदार तेरा....

Wednesday, July 16, 2014

सितम-ए-मुहब्बत ......

 
 दुनिया मशगूल है सितम-ए-दिल कि बेपरवाह आश्कीयो में,
और हम बेवजे पत्थर को मुहब्बत बना बैठे..
धीरे-धीरे चलता रहा यूँही एक सिल्सला,
मंज़िल के करीब होकर फिर रास्ता भूला बैठे!!!

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