कल मैं अपने कल से मिला ,
आते गुजरते हर एक पल से मिला ,
मिला उस बालक की उम्मीद भरी आखों से ,
उस बूढ़े शरीर जर्जर से मिला,
कल मैं अपने कल से मिला।
मिला उन् पैदा होती उमीदो से,
जो पाली थी मैंने अपने बच्चपन में,
कभी सैर करना बादलो पे,
कभी जाना उस पार गगन में,
उन सारे जीवन से भरे पालो से,
उन सारे सुन्हेरे पालो से दलदलो से,
उस बाघ से जिसका हर पुष्प था खिला,
कल मैं अपने कल से मिला।
मिला मैं फिर उस वृद्ध इंसान से,
जीवन के पड़ाव पे खड़े खुद के सारांश से,
बुझी सी उन आखों से,
कुछ कही कुछ अनकही बातों से,
आखों में आसू लिए उस जीवन कम से,
जीवन को जीवन न बना पाने के उस गम से,
डूबी उम्मीदों से,और उनका उठता जलजला,
कल मैं अपने कल से मिला।
फिर मिला मैं उस पल से,
ठहरी हुई सी उस हलचल से,
जो रुका था इस विश्वास से,
अपनाए जाने के उल्लास से,
उस पल का नाम अज था,
उसका सिर्फ एक ही साज़ था,
बीते कल में तूने कल ही चिंता की,
आते कल में तूने बीते कल की व्यथा ली,
भुला दिया तुमने जीना जिस पल में था,
और चलता रहा यही कल का सिलसिला ,
समझा मैं जब सच को,
तो मैं अपने आज से मिला।
बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति सुन्दर रचना।
ReplyDeleteअरुन शर्मा
मिला उन् पैदा होती उमीदो से,
जो पाली थी मैंने अपने बच्चपन में,
कभी सैर करना बादलो पे,
कभी जाना उस पार गगन में,
उन सारे जीवन से भरे पालो से,
उन सारे सुन्हेरे पालो से दलदलो से,
उस बाघ से जिसका हर पुष्प था खिला,
कल मैं अपने कल से मिला।
sukriya ji
ReplyDeleteBeautiful blog, I read quite some now, and I love your originality, From Smart v/s stupid
ReplyDeleteVery nice poem.
ReplyDeleteBLOG: Wing Commander Vishnu Singh (Retd)
"कल मैं अपने कल से मिला"
ReplyDeleteआपने बहुत सुंदर लिखा - आशीष और बधाई
sabhi ko dhanyawaad ..
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