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Thursday, April 30, 2015

ख्वाहिश....

ख्वाबों की भी ख्वाहिश थी,
कि कोई उनका मुक्कदर पढ़े!
कब तक चलना है रातो को,
अंधेरो में उजाले लिए!
कब तक लड़ना है मौजों को,
कश्ती मे समुन्दर लिए!!!

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