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Monday, August 13, 2012

ढूँढता हूँ



अभी  भी   ढूँढता  हु  उस  रात  को ,
जो  कभी  सुबह  होने  नहीं  देगी ,
अब  भी   ढूँढता  हूँ  उस  तन्हाई  को ,
जो  शोर  के  आगोश  में  खुद  को  खोने  न  देगी ,
हँसा  तो  मैं  भी  बहुत  था  अपने  ही  गमो  पर ,
पर   ढूँढता   हु  अभी  भी  वो  ज़िन्दगी ,
जो  आंसुओ  से  खुद  को  भिगोने  न  देगी .


मिलेगी  कहाँ  वो  ख़ुशी ,
जो  गम  को  खुद  का  गला  घोटने  न  देगी ,
और  मिलेगी  कहाँ  वो  सुबह  जो ,
शाम  के  धागे  में  खुद  को  पिरोने  न  देगी .
मंजिलो  से  मिल  चूका  हु  अब  मैं  भी  कई  बार ,
पर  अब   ढूँढता  हु  वो  राह  ,
जो  मंजिलो  पर  खुद  को  ख़त्म  होने  न  देगी .


कहाँ  मिलेगी  वो  समाप्ति ,
जो  मृत्यु  स्वयं  को  बोलने  न  देगी ,
कहाँ  मिलेगी  वो  हसी ,
जो  होठो  तक  खुद  को  समितने  न  देगी .
कई  लहरों  को  मिलते  देखा  है  मैंने  नदी  से ,
पर  अब   ढूँढता  हु  मैं  वो  नदी ,
जो  सागर  में  अपने  अस्तित्वा  को  खोने  न  देगी .
अभी  भी   ढूँढता  हूँ  मैं   उस  रात  को  ,
जो  कभी  सुबह  होने  न  देगी |

4 comments:

  1. खो ना जाना कहीं सुबह खोजते हुए :D
    भावपूर्ण प्रस्तुति!

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    1. thanks ,... waise kho bhi gaya to tum bacha lena ... he he

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  2. बेहद सुन्दर खुबसूरत रचना,
    अरुन=www.arunsblog.in

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