अभी भी ढूँढता हु उस रात को ,
जो कभी सुबह होने नहीं देगी ,
अब भी ढूँढता हूँ उस तन्हाई को ,
जो शोर के आगोश में खुद को खोने न देगी ,
हँसा तो मैं भी बहुत था अपने ही गमो पर ,
पर ढूँढता हु अभी भी वो ज़िन्दगी ,
जो आंसुओ से खुद को भिगोने न देगी .
मिलेगी कहाँ वो ख़ुशी ,
जो गम को खुद का गला घोटने न देगी ,
और मिलेगी कहाँ वो सुबह जो ,
शाम के धागे में खुद को पिरोने न देगी .
मंजिलो से मिल चूका हु अब मैं भी कई बार ,
पर अब ढूँढता हु वो राह ,
जो मंजिलो पर खुद को ख़त्म होने न देगी .
कहाँ मिलेगी वो समाप्ति ,
जो मृत्यु स्वयं को बोलने न देगी ,
कहाँ मिलेगी वो हसी ,
जो होठो तक खुद को समितने न देगी .
कई लहरों को मिलते देखा है मैंने नदी से ,
पर अब ढूँढता हु मैं वो नदी ,
जो सागर में अपने अस्तित्वा को खोने न देगी .
अभी भी ढूँढता हूँ मैं उस रात को ,
जो कभी सुबह होने न देगी |