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Thursday, July 16, 2015

बेवफ़ाई........

कितनी मुद्दत हुई जो तेरी याद ना आई,
वो जमाने ओर थे जब बेनतह चाहा था तुझे....
वकत की रफतार नही मेरे दर्द का फलसफा है,
जिसने समय रहते बदल डाला मुझे....

Monday, June 15, 2015

यु .पी. कि छुटकी लड़की..........


एक छोटे से शहर की छोटी सी लड़की,
ख्वाब जिसके आसमां छूते,
रंग बिरंगे सपने बिखेरते,
ना जाने कब बड़ी हो गयी...
अंग्रे़जी में गिट पीट करने लगी,
पानी मे जहाज बनाने वाली,
कागज के विमान उड़ानें वाली ,
कब देस-विदेस घूमने लगी...
खाती थी जो बस आलू भात,
अब भाता उसको पिज़्ज़ा बर्गर,
चुहिया जितना खाती अब,
खाती थी जो प्लेट भर-भर...
वो टून-टून जैसी दिखने वाली,
जो धम धम उधम मचाति  थी,
आज गाँव  सारा दंग रह गया,
देख के उसकी पतली कमर,
सांवरा सुन्हेरा सा रूप,
देखने में बिल्कुल जीरो फिग....
ना जाने कब बड़ी हो गयी,
वो चंचल नैनो वाली,
नाचती गाती, तितली
जैसे रंग बिलखाती...
हो गयी कब सयानी..
जो करती थी अपनी मनमानी....
वो यु .पी. की छुटकी लड़की....




बेटियाँ होती हैं परायी..........

सबने पूछा ससुराल में,
बेटी दहेज मे क्या लाई..
ना पूछा किसी ने प्यार से ,
वो बेटी क्या क्या छोड़ आई..
होती है जब पैदा बेटी,
कहते हैं उसको लछमी,
भर देती हैं वो घर खुशीयों से,
फिर कह देते है,
बेटियाँ होती हैं परायी,
ना पूछा फिर भी किसी ने प्यार से ,
बेटी, क्या क्या छोड़ आई!!!

Saturday, May 16, 2015

परीक्षा जिंदगी की ..............

जब से परीक्षा वाली
जिंदगी पूरी हुई है,
तब से जिंदगी की परीक्षा
शुरु हो गई है..
किताब लेकर...
रोज मैं ढूँढती हूँ जवाब.....
जिंदगी है क़ि रोज...
'सिलेबस' के बाहर से ही पूछती है..

Monday, May 11, 2015

एक छोटी कविता‬

जिंदगी में हर वो शक्स परेशान है,
जिसे ख़ुद पर भरोसा नहीं,
और रखता वो उमीदों कि दुकान है....
ऐ, ज़िंदगी के मुसाफिर!
रखले ख़ुद पे विश्वास जरा,
खुश रहा तो जी लिया, नहीं तो,
कोई नहीं पूछेगा,
अगर तू कल का मरता आज मरा !!!!
~ जस्मीत 

Thursday, April 30, 2015

ख्वाहिश....

ख्वाबों की भी ख्वाहिश थी,
कि कोई उनका मुक्कदर पढ़े!
कब तक चलना है रातो को,
अंधेरो में उजाले लिए!
कब तक लड़ना है मौजों को,
कश्ती मे समुन्दर लिए!!!

पता नहीं कैसे सीख गई मैं...........


पता नहीं कैसे सीख गई मैं माँ,
रोटी बनाना,
अब तो गोल बना लेती हूँ।
वो भारत का नक्शा,
अब नक्शा नहीं,
पृथ्वी जैसा दिखता है।
आधा पक्का,आधा कच्चा,
सिकता था जो,
अब अच्छे से सिकता है।
न जाने कैसे मैं सीख गई माँ,
सब्जी बनाना,
जो कभी तीखी,
कभी फीकी,
कभी,
लगभग बेस्वाद सी बनती थी
अब तो,
हर एक मसाला उसमे,
बराबर डलता है
नमक बिना माप भी,
अब तो,
एकदम सही पड़ता है।
जाने कब सीख गई मैं.
तय बजट में चलाना,
हर महीने,
कपड़ों पे खर्च कर देने वाली मैं,
अब तो,
पाई पाई का हिसाब रखती हूँ।
जरुरत की चीजों की खरीदी पर भी
अब तो,
काफी कंट्रोल करती हूँ
जाने मैं सीख कैसे गई माँ,
यूँ सबका ख्याल रखना,
किसी की परवाहन करने वाली मैं,
अब सबके लिए सोचने लगी हूँ,
खुद से भी ज्यादा तो
अब मैं,
दूसरों की चिन्ता करने लगी हूँ।
और जाने कैसे सीख गई,
मैं चुप रहना,
सबकुछ यूँ चुपचाप सहना,
आप पर बात बात पे झल्लाने वाली मैं,
अब अधिकतर मौन ही रहती हूँ ,
आज गलती नहीं मेरी कोई,
सही हूँ ,
फिर भी चुपचाप सब सहती हूँ।
न जाने कैसे सीख गई
इतनी दुनियादारी,
मैं माँ,
कभी छोटी -छोटी बातों पे भी
आहत हो जाने वाली मैं,
आज बड़े बड़े दंश झेलना सीख गई,
एक छोटी सी परेशानी पर भी
फूट फूट कर रोने वाली मैं,
आज अकेले में पलकों की कोरें
गीली करना सीख गई
पता नहीं कैसे सीख गई मैं माँ
ये सब
न जाने कैसे
बस सीख ही गई...

Monday, January 19, 2015

रंग बदलती दुनिया ....

मैंने .. हर रोज .. जमाने को .. रंग बदलते देखा है ....
उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है .. !!

वो .. जो चलते थे .. तो शेर के चलने का .. होता था गुमान..
उनको भी .. पाँव उठाने के लिए .. सहारे को तरसते देखा है !!

जिनकी .. नजरों की .. चमक देख .. सहम जाते थे लोग ..
उन्ही .. नजरों को .. बरसात .. की तरह ~~ रोते देखा है .. !!

जिनके .. हाथों के .. जरा से .. इशारे से .. टूट जाते थे ..पत्थर ..
उन्ही .. हाथों को .. पत्तों की तरह .. थर थर काँपते देखा है .. !!

जिनकी आवाज़ से कभी .. बिजली के कड़कने का .. होता था भरम ..
उनके .. होठों पर भी .. जबरन .. चुप्पी का ताला .. लगा देखा है .. !!

ये जवानी .. ये ताकत .. ये दौलत ~~ सब कुदरत की .. इनायत है ..
इनके .. रहते हुए भी .. इंसान को ~~ बेजान हुआ देखा है ... !!

अपने .. आज पर .. इतना ना .. इतराना ~~ मेरे .. यारों ..
वक्त की धारा में .. अच्छे अच्छों को ~~ मजबूर हुआ देखा है .. !!!

कर सको......तो किसी को खुश करो......दुःख देते ........तो हजारों को देखा है..

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